छः दिसम्बर: “राष्ट्रीय गौरव का दिन

देहरादून
प्रेम बड़ाकोटी

छः दिसम्बर बयानवे,
इतिहास का स्मरणीय क्षण, बाधाओं को भेदता,
अवध का समरांगण,
सुयश ! शौर्य दिवस !

राष्ट्रीय अध्याय का स्वर्णिम पल,
संयमित,अनुशासित,किन्तु क्रोधित,
कारसेवकों का आत्मबल,
अयोध्या के जन जन का सम्बल ।
चिर प्रतीक्षित !
संघर्षों,बलिदानों की परिणिति,
पाँच शताब्दियों के निर्णय का समय,
बाबरी का अन्त था यह ।

पीढ़ियों का संघर्ष था,
नवचेतना का उद्घोष था,
राष्ट्रभक्तों के अन्तःकरण में,
अंकुरित आक्रोश था।
इतिहास में अंकित साक्ष्य,
सहस्त्रों आत्माहुति,
उद्देश्य!
जन्मभूमि की मुक्ति,
दिव्य मन्दिर निर्माण।

वर्ष ८३ प्रयागराज के तट पर,
उभरता यह प्रश्न !
कब तक ताला लटका रहेगा?
कब तक हिन्दू प्रताड़ना सहेगा ?
और फिर,
ग्राम-ग्राम, डगर-डगर, जनजागरण,शंखनाद,
समुद्रमंथन सी गर्जना,
चतुर्दिक निनाद। युवा हृदय,सन्त सन्यासी,
उत्तर, दक्षिण हर भारतवासी,
तत्पर था, बेचैन था,
यह कलंक मिटाने को,
श्रीराम की प्रतिष्ठा लौटाने को ।

शिलान्यास,प्राणप्रतिष्ठा,धर्मध्वजा,
ये सब,इस अभियान के विविध चरण हैं,
इस संकल्प के सिंहावलोकन हैं । .
कि,यह अधिष्ठान,
पूर्ण होकर ही रहेगा,
जन्मभूमि पर,मन्दिर बनेगा,
वहीं बनेगा,भव्य बनेगा।

इक्ष्वाकुवंशी राम !
मानव थे,कर्तव्यपरायण थे,
सत्यानुगामी थे,आचरण के स्वामी थे।
नरोत्तम थे, तो ही वे पुरुषोत्तम थे।

श्रीराम जन्मभूमि !
मात्र पर्यटन केन्द्र नहीं,
यह तीर्थ है,तीर्थ ही रहे,
तीर्थाटन,देशाटन का रूप गहे,
इसका दर्शन,
नयनाभिराम है,सुन्दर है।
यह भारत की अनुपम धरोहर है॥

प्रेम बड़ाकोटी
सम्पर्क: ९४५६७१२३००